चल रहा हूँ मैं
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मगर चल रहा हूँ मैं
मंजिल की तलब को
आज भी मचल रहा हूँ मैं
मायूस हुआ, बेज़ार हुआ
नाकामी का इश्तिहार हुआ
धीरे-धीरे, तन्हा-तन्हा
ही सही चल रहा हूँ मैं
हर एक ने मुस्कराके छोड़ दिया
जिसको अच्छा लगा तोड़ दिया
दुश्मनों के जख्म भी अच्छे लगे
जबसे दोस्ती में जल रहा हूँ मैं
मेरी ख़ामोशी को कमजोरी न समझ
सवाल तुझसे नहीं तू मत उलझ
तुझसे मिलूँगा मैं फिर से दोबारा
अभी तो अपनी राह निकल रहा हूँ मैं
इक यकीन होता तो उठ जाता
अकीदे पे सवाल नहीं
ए अल्लाह इसी उम्मीद में
हर मुसीबत से लड़ रहा हूँ मैं
- एक मित्र के द्वारा
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