राही

कई लोगो से दूर,
कुछ लोगो के पास,
यादें लेके, अपेक्शायों के साथ,
आँखों में आसू के मोती, 
होंठों पे एक तनिक मुस्कान,
बार बार हर बार
जैसे हो एक लहर 
जो उठे सागर के मद्ध्यम से,
लेके कई सपने,
पर तट पर पहुचकर, 
बिखेर दे सब ख्वाब,
जैसे एक बच्चे का रोना,
जो पलक झपकते ही बन जाता है
दुनिया की सबसे मीठी हंसी, 
जैसे बारिश की एक बूँद, 
जो गिरती है बादल से रिहा होके सब ज़ंजीरो से,
पर ज़मीन पर पहुचते ही खो देती है अपना अस्तित्व, 
वैसे ही हूँ मैं आज,
जा रहा हु मैं,
कुछ लोगो से दूर,
कुछ लोगो के पास |

Comments

  1. poems kab se likhne lag gaya tu?

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  2. Good question. Jabse yahaan aya tabse hi shuru kiya. SOcha nahi tha ye. Ab sochna padega ki kyu..!

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